आजकल काफी दिनों बाद लिखने का मन कर रहा है . बहुत कुछ बदल गया है .प्रदेश की सरकार जातिवादी से समाजवादी हो चुकी है . मेरे जीवन में भी भारतीय अर्थव्यस्था की तरह कई उतर चढाव आ चुके हैं . बेंगलुरु से लखनऊ आ गया हूँ . कैसिओ को छोड़कर एक कोचिंग में एक छोटी सी नौकरी कर रहा हूँ .सायद जिन्दगी रोज नये
रंग में ढल जाती है कभी दुसमन तो कभी दोस्त नजर आती है. खैर छोड़िये इन बातो को लखनऊ की बात बताता हूँ . कभी चिलचिलाती धुप में फूटपाथ पर चाय मिल जाती थी लेकिन अब वो नहीं है . कपूरथला पर एक देवा टी स्टाल हुआ करती थी और हम हमारे दोस्तों के मिलने की पसंदीदा जगह अब देवा बिरयानी हो चुकी है . पुराने हनुमान जी के मंदिर के दरवाजे की मरम्मत हो चुकी है . हज़रत गंज में एक रेस्टोरेंट जो कभी विद्यार्थियों के खाने की बढ़िया जगह थी जहाँ सस्ते में खाना मिल जाया करता था अब महंगा हो चूका है. पुरनिया चौराहे पर रुकने की कोई वजह नहीं रही . किसी ज़माने में सेफाली का घर हुआ करता था अब वो अपने पति के साथ पुणे में है . किसी ने पूछा अमा लखनऊ में कयूं हो , तो एक छोटा जा जबाब था
"हमे लखनऊ से मोहब्बत है ."