शुक्रवार, 21 अगस्त 2009
बस में गाँधी
ऑटो वाले हरताल पर थे सो मैंने बस से जाने का फैसला किया । बस में चरते ही गाँधी पर नजर पड़ी । भीर में अबे कुचले से खड़े थे। मैं भी खड़ा हो गया । पर अजीब सी बात हुई वो हमसे छिपाने की कोशिश कराने लगे मैंने उनसे पूछा की एपी कहाँ जा रहे हैं बापू तो बोले की मैं दिल्ली की सर कराने निकला हुं । सो मैं चला तो थोड़े पैसे लेकर पर हर इस्ताप पर बस वाला जयादा पैसे मंगाता है । मैंने कहा की बस वाले से आप को पुछन चाहिए तो वो बोलने लगे कई बार पूछा बस वाला कहता है की पहचानते नहीं यह लोकल बस है । और तुरुन्त मार पिट पर उतर गया । क्या करू देना परता है । .........................बापू चले गए ................और मैं ..............आगे लिखूंगा ...............
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